Add To collaction

लेखनी कहानी -16-Jan-2023 6)वो पीछे छूटता स्कूल ( स्कूल - कॉलेज के सुनहरे दिन )




शीर्षक =वो पीछे छूटता स्कूल



उम्मीद करता हूँ, आप सब अच्छे होंगे और मेरे द्वारा लिखें जा रहे संस्मरणों को पढ़ कर कही ना कही अपने स्कूल / कॉलेज के सुनहरे दिनों को याद कर रहे होंगे


चलिए अपने इस सफऱ को आगे बढ़ाते हुए कुछ और यादों को आपके समक्ष रखने का प्रयास करते है, जैसा की हमने पिछले संस्मरण में बताया था, कि वो स्कूल जो कक्षा आठ तक था, लेकिन हमें उसे छोड़ना पड़ा


इस संस्मरण में हम यही बताएँगे कि आखिर क्या वजह रही की हमें उसे छोड़ना पड़ा, पहले उस स्कूल से जुडी कुछ और खट्टी मीठी यादों का ज़िक्र करते है


जैसा की उस स्कूल का नाम था " पैराडाइस पब्लिक स्कूल " यानी जिसका हिंदी में अर्थ होता है जन्नत या फिर स्वर्ग, जैसा उसका नाम था वैसा ही वो स्कूल था, हमारे लिए वो किसी स्वर्ग से कम थोड़ी था, हमारा बचपन और उससे जुडी बहुत सारी सुनहरी यादें उस स्कूल के माध्यम से हमने जी है


उस स्कूल में होने वाली प्रार्थना या दुआ " लब पे आती है, दुआ बनके तमन्ना मेरी " आज़ भी हमें याद है और ज़ब कभी भी ये दुआ सुनते है तो ऐसा लगता है, उस दुआ के साथ साथ हमारा बचपन भी हमारे सामने चलचित्र की भांति चल रहा हो,


वो सारे बच्चें हाथ फेलाये एक लाइन में खड़े हो,अदखुली आँखों से सामने दुआ करा रहे बच्चों को देखना फिर अध्यापकों की तरफ देखना, कभी कभी दुआ के बीच बीच में दोस्तों से काना फूसी करना


वो राष्ट्रगान पर जोर जोर से जया है, जया है,,,,, जया है कहना और फिर भागते हुए अपनी अपनी कक्षाओं की और बढ़ना और शर्त लगाना कौन सबसे पहले कक्षा में पहुंचेगा, वो अपने दोस्त के ना आने पर गम जदा होना


उस स्कूल से बहुत सी ऐसी यादें है, जिन्हे लफ्ज़ो में बयान कर पाना थोड़ा मुश्किल है, कुछ अच्छी है तो कुछ बुरी,

एक बात हमें अभी तक याद है और ज़ब कभी भी वो बात याद आती है, तब हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, बात कुछ इस तरह है, कि हमारी अंग्रेजी वाली अध्यापिका हम सबको ब्लैक बोर्ड पर काम देकर कुर्सी पर बैठी थी, कुर्सी दीवार से कुछ दूरी पर थी जिसे वो बैठे बैठे हिला रही थी, जैसा कि ज्यादातर लोग कुर्सी पर बैठ कर कुर्सी को पीछे की और धकेलते है, हम भी कभी कभी ऐसा करते है


हमारी अध्यापिका भी इसी तरह कर रही थी, कि अचानक कुर्सी का पैर टूट गया और वो धड़ाम से नीचे गिर गयी, उन्हें चोट आयी होगी, लेकिन वो इतने सारे बच्चों के सामने फटाक से उठ खड़ी हुयी, लेकिन हम बच्चों को तो बस बहाना चाहिए होता है, लंच टाइम में वो खबर हमारे क्लास से होकर पूरे स्कूल में जंगल की आग की तरह फेल गयी की अंग्रेजी वाली मैडम कुर्सी से गिर गयी फिर क्या था? सब जगह उनके ही चर्चे होने लगे


इसी के साथ साथ और भी बहुत सी ऐसी यादें है, जिनकी छाप आज़ भी हमारे दिलो दिमाग़ में छपी हुयी है, कभी पहली सीट पर बैठने के पीछे लड़ना तो कभी ब्लैक बोर्ड साफ करना एक अहम फर्ज़ समझना, अध्यापिका द्वारा दुसरे क्लास से डस्टर मंगाने भेजनें पर इस तरह महसूस करना मानो सरहद पार कोई सन्देश पहुंचाने जाना हो


वो स्कूल में होने वाले प्रोग्राम और उन प्रोग्रामो में भाग लेने के लिए घर से पैसों का इंतेज़ाम करना, वो 15 अगस्त पर घरों घरों जाकर फूलों का इंतेज़ाम करना वो मैया यशोधा वाले गाने पर स्कूल की लड़कियों को भाग लेते देखना उनकी रिहर्सल को चोरी छुपके देखना, ये सब उस स्कूल की सुनहरी यादें है,जिसे ना चाहते हुए भी छोड़ना पड़ा सिर्फ मुझे ही नही सारे बच्चों को फिर चाहे वो नर्सेरी में थे या फिर कक्षा 8 में


उसका मुख्य कारण था, उस स्कूल का बंद होना, दरअसल वो स्कूल एक घर में बना हुआ था और वो घर दो भाइयो का था, उसे इस हिसाब से बनाया गया था कि ज़ब तक उनकी शादी नही हुयी है तब तक वो स्कूल रहेगा लेकिन शादी के बाद वो स्कूल ख़त्म कर दिया जाएगा, और ऐसा ही हुआ, हम जब 5 वी कक्षा में थे तब उन दोनों भाइयो की शादी तय हो गयी, जिसके चलते वहाँ रेनोवेशन का काम शुरू हो गया, हम सब को ज़ब ये बात पता चली तब हमें बहुत दुख हुआ, हमारे वहाँ बहुत से दोस्त थे जो इस तरह बिछड़ने वाले थे, और बिछड़ ही गए कोई कही गया किसी स्कूल में दाखिला लेने, तो किसी का शिक्षा का सफऱ ख़त्म हो गया उस स्कूल के साथ साथ उसे किसी काम पर बैठा दिया उनके माता पिता ने


लेकिन हम ख़ुशक़िस्मत थे, जिसे आगे पढ़ने का मौका मिला, आगे के संस्मरण में बताएँगे की वो कौन सा नया स्कूल था जहाँ हमने कक्षा 6 में दाखिला लिया, और कक्षा 10 तक वही रहे, इतना अरसा गुज़ारने के कारण उस स्कूल से हमारी बहुत सारी सुनहरी यादें जुडी हुयी है जिन्हे हम आगे के संस्मरण में साँझा करेंगे इंशाअल्लाह, ज़ब तक के लिए अलविदा


स्कूल / कॉलेज के सुनहरे दिन 

   8
4 Comments

बेहतरीन

Reply

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 12:31 PM

Nice

Reply